बलौदाबाजार में गौवंश की मौत पर गरमाई सियासत: पत्रकारों पर दबाव, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर संकट

 बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़ | 29 जुलाई 2025


बलौदाबाजार जिले के ग्राम पंचायत रिसदा में गौवंश की मौत ने एक बार फिर प्रदेश में गौसेवा के दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर नेताओं द्वारा मंचों से गौमाता की सेवा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर नजर आ रही है।


स्थानीय पत्रकारों द्वारा गांव में मरते हुए मवेशियों की तस्वीरें और दुर्दशा को उजागर किए जाने के बाद मामला तूल पकड़ गया है। जानकारी के अनुसार, बीते दिनों कई गौवंश केवल इसलिए काल के गाल में समा गए क्योंकि उन्हें न समय पर चारा मिला, न पानी और न ही कोई चिकित्सकीय सुविधा। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि फसल सुरक्षा के नाम पर मवेशियों को एक स्थान पर बंद तो कर दिया गया, परंतु प्रबंधन की भारी कमी के चलते कई गायों की मौत हो गई।


जब इस गंभीर लापरवाही को मीडिया द्वारा उजागर किया गया, तो मामला सुलझाने के बजाय पत्रकारों को ही निशाना बनाया जाने लगा। बताया जा रहा है कि बलौदाबाजार सरपंच संघ ने कलेक्टर को पत्र सौंपकर पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। सरपंचों ने यह तक कह दिया कि गौवंश की देखरेख की जिम्मेदारी केवल पंचायतों की नहीं है और मीडिया को ऐसे मुद्दों से परहेज़ करना चाहिए, जिससे पंचायतों की छवि खराब हो।

गौमाता की दुर्दशा: घोषणाओं से परे, हकीकत बेहद कड़वी

प्रदेश भर में गौशालाओं की हालत खराब है, बजट नदारद है और जिम्मेदारी तय नहीं की जा रही। सड़क किनारे घायल और बीमार हालत में पड़ीं गायें, खुली सड़कों पर दुर्घटनाओं की शिकार होती गौमाता — ये हालात गौसेवा के उन वादों को कटघरे में खड़ा करते हैं जो चुनावों में गूंजते हैं।

पत्रकारों पर दबाव: लोकतंत्र के स्तंभ पर सीधा हमला

गौवंश की बदहाली पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को धमकी देना, उन पर बेबुनियाद आरोप लगाना और प्रशासनिक दबाव बनाना स्वतंत्र पत्रकारिता पर सीधा प्रहार है। यह घटना न सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करती है, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी हिला देने वाली है।

सवालों के घेरे में सरकार, पंचायत और प्रशासन

गौवंश की देखरेख की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? क्या पंचायतें अकेले इस दायित्व को निभा सकती हैं? क्या जिला प्रशासन और राज्य सरकार की इसमें कोई जवाबदेही नहीं? जब इन सवालों से मुंह मोड़ा जाता है और सच्चाई दिखाने वालों को ही दोषी ठहराया जाता है, तो यह शासन प्रणाली की गंभीर विफलता को दर्शाता है।

जनता अब जवाब चाहती है

गौमाता की दुर्दशा पर राजनीति करने वालों से जनता अब जवाब तलब कर रही है। यदि सड़कों पर तड़पती एक भी गाय की तस्वीर सामने आती है, तो यह किसी एक पंचायत की नहीं, पूरे शासन तंत्र की संवेदनहीनता का प्रमाण है।


निष्कर्ष: गौवंश की सेवा केवल चुनावी नारे तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। और यदि पत्रकार इस वास्तविकता को सामने लाते हैं, तो उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए, न कि उत्पीड़न का शिकार बनना चाहिए।