स्वतंत्रता दिवस विशेष 

 *जब तक मीडिया को नहीं मिलेगा संवैधानिक दर्जा, लोकतंत्र रहेगा अधूरा*


बलौदाबाजार:- 15 अगस्त 2025 दिन शुक्रवार को भारत देश अपनी स्वतंत्रता के 79 वर्ष  का जश्न मनाएगा । प्रतिवर्ष की भाति लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा देशवासियों को विकास, प्रगति और सामाजिक सौहार्द का संदेश दिया जायेगा । लेकिन इसी बीच लोकतांत्रिक विमर्श में एक और स्वर तेज़ होता है —लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी संविधान में दर्जा मिले, मीडियापालिका का गठन हो। भारत की लोकतांत्रिक संरचना आज तीन मुख्य संवैधानिक स्तंभों —विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका  पर आधारित है। इन तीनों को संविधान में न केवल स्थान दिया गया है, बल्कि उनके अधिकार, दायित्व और शक्तियाँ भी स्पष्ट परिभाषित हैं। मगर चौथा स्तंभ मीडिया — जिसे लोकतंत्र की आत्मा और जनता की आवाज़ कहा जाता है, अभी भी संवैधानिक छतरी से बाहर है। यही वजह है कि मीडिया की स्वतंत्रता समय-समय पर राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक दबाव में आ जाती है।


*संवैधानिक दर्जा ना होने के कारण उत्पन्न समस्याएँ*


बिना संवैधानिक सुरक्षा के मीडिया को सरकारी विज्ञापन, मान्यता और लाइसेंस पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे संपादकीय स्वतंत्रता प्रभावित होती है। संवैधानिक दर्जा न होने के कारण शासन प्रशासन अक्सर मीडिया को दबाने का कार्य करता है ।लघु एवं ग्रामीण समाचार पत्रों और डिजिटल मंचों पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव इतना बढ़ गया है कि वे धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं या नियंत्रण में आ रहे हैं। इससे विविधता और जनपक्षीय पत्रकारिता प्रभावित हो रही है। संवैधानिक संरक्षण न होने के कारण पत्रकार अक्सर झूठे मुकदमों, गिरफ्तारी और धमकियों के शिकार होते हैं, जिससे खोजी पत्रकारिता कमजोर पड़ रही है।


*एक ही समाधान — मीडियापालिका का गठन*


 जिस तरह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को संविधान में परिभाषित स्थान और अधिकार प्राप्त हैं, वैसे ही मीडिया के लिए भी "मीडियापालिका" के रूप में एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और सशक्त संवैधानिक निकाय का गठन हो।राष्ट्रीय मीडिया आयोग के रूप मे एक संवैधानिक संस्था जो मीडिया की स्वतंत्रता, नैतिकता, सुरक्षा और पेशेवर प्रशिक्षण की देखरेख करे, और जिसमें किसी भी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप न हो। मौजूदा प्रेस काउंसिल को निर्णयात्मक शक्तियों और संवैधानिक दर्जे के साथ पुनर्गठित किया जाए, ताकि यह न केवल शिकायतें सुने, बल्कि ठोस कार्यवाही कर सके। मीडिया के केंद्रीकरण को रोकने के लिए ग्रामीण और क्षेत्रीय पत्रकारिता को वित्तीय व कानूनी संरक्षण मिले, जिससे देश के हर कोने की आवाज़ राष्ट्रीय मंच तक पहुंचे।


*संवैधानिक दर्जा क्यों जरूरी है?*


मीडिया वह दर्पण है जिसमें जनता सत्ता का असली चेहरा देखती है। क्योंकि भ्रष्टाचार, अन्याय और प्रशासनिक कुप्रबंधन को उजागर करने का काम सिर्फ स्वतंत्र मीडिया कर सकता है। अगर मीडिया कमजोर हुआ, तो लोकतंत्र केवल दिखावटी रह जाएगा। 79वें स्वतंत्रता दिवस पर यह मांग और भी प्रासंगिक हो जाती है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी वही अधिकार और सुरक्षा मिले जो बाकी तीन स्तंभों को है। मीडियापालिका का गठन न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता की गारंटी देगा, बल्कि यह लोकतंत्र को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा। जब तक मीडिया सशक्त नहीं होगा, लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता।