जिला स्तरीय पंथी नृत्य प्रतियोगिता पलारी में आयोजित होगी — कलेक्टर ने दी सहमति
बलौदाबाजार -बाबा गुरु घासीदास जी की जयंती पर्व की भव्य परंपरा के अंतर्गत इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ में 1 दिसम्बर 2025 से गुरुमाह की शुरुआत होने जा रही है। इसी क्रम में सोमवार को सामाजिक प्रतिनिधि मंडल द्वारा कलेक्टर बलौदाबाजार से मुलाकात कर जिला स्तरीय पंथी नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन पलारी में करने का प्रस्ताव रखा गया, जिस पर कलेक्टर ने सहमति प्रदान करते हुए आवश्यक दिशानिर्देशों पर सकारात्मक आश्वासन दिया। इस निर्णय से क्षेत्र के समाज और सांस्कृतिक मंचों में उल्लास का वातावरण है।
छत्तीसगढ़ में बाबा गुरु घासीदास की जयंती केवल एक दिवस का आयोजन नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव है, जिसकी शुरुआत 1 दिसम्बर से ही हो जाती है और यह श्रृंखला मार्च-अप्रैल तक चलती है। बताया जाता है कि यह विश्व में सबसे लंबे समय तक मनाई जाने वाली जयंती पर्व श्रृंखलाओं में से एक है।
इस अवसर पर जहां प्रदेशभर में सामाजिक कार्यक्रम,सतनाम नामायन,चौका भजन, नाचा,प्रवचन, दर्शन और भक्ति के आयोजन होते हैं, वहीं हर जिले और गांव में पंथी नृत्य का आयोजन इस पर्व का केंद्र बिंदु माना जाता है।
पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज की पहचान और आध्यात्मिक विरासत है। यह केवल एक नृत्य रूप नहीं, बल्कि समानता, सत्य, शांति और न्याय के संदेश वाहक बाबा गुरु घासीदास की वाणी और सिद्धांतों का जीवंत माध्यम है।
मनखे-मनखे एक समान की पवित्र अवधारणा को नृत्य के हर कदम, गीत के हर शब्द और ताल के हर स्पंदन के साथ महसूस किया जा सकता है।
यह एक पारंपरिक नृत्य है जिसमें गीत, ताल, मुद्रा और आध्यात्मिक भाव प्रमुख हैं।
पंथी नृत्य करने वाले कलाकार नृत्य के दौरान केवल कला प्रस्तुत नहीं करते, बल्कि भक्ति, अनुशासन और साधना का अभ्यास भी करते हैं।
यह नृत्य शरीर, मन और आत्मा को संतुलित कर नृत्य-योग का अनोखा स्वरूप प्रस्तुत करता है। नियमित रूप से पंथी नृत्य करने वाले व्यक्ति न केवल शारीरिक रूप से सशक्त बनते हैं, बल्कि मानसिक शांति, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक चेतना भी प्राप्त करते हैं।
जिला स्तरीय पंथी प्रतियोगिता पलारी में आयोजित होने के निर्णय से न केवल प्रतिभाओं को मंच मिलेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में पंथी नृत्य की परंपरा और भी सुदृढ़ होगी।
जैसे-जैसे गुरुमाह का शुभकाल निकट आ रहा है, वैसे-वैसे छत्तीसगढ़ में भक्ति, संस्कृति और गुरु परंपरा का उत्साह चरम पर दिखाई दे रहा है।





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